Happy Makar Sankranti to all !
मकर संक्रांति हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है। हर साल यह 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है।
इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है। और इसी दिन से लम्बे दिनों की शुरुआत हो जाती है।
मकर संक्रांति (Makar Sankranti) उन कुछ प्राचीन भारतीय त्योहारों में से एक है जो सौर चक्रों के अनुसार देखे गए हैं, जबकि अधिकांश त्योहार हिन्दू कैलेंडर के चंद्र चक्र द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
एक ऐसा त्योहार होने के नाते जो सौर चक्र के अनुसार मनाया जाता है, यह लगभग हमेशा हर साल उसी ग्रेगोरियन तारीख (14 जनवरी) को पड़ता है, सिर्फ कुछ वर्षों को छोड़कर, जब उस वर्ष के लिए तारीख एक दिन के लिए (15 जनवरी) बदल जाती है।
मकर संक्रांति का त्यौहार अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
उत्तर भारतीय हिन्दुओं और सिखों द्वारा यह माघी (लोहड़ी के बाद का दिन) नाम से जाना जाता है।
दक्षिण भारतीय लोग इसे मकर सक्रांति (पेद्दा पंडागा) कहते हैं।
मध्य भारतीय लोग इसे सुकारत कहते हैं।
असम में इसे माघ बिहू कहा जाता है और तमिलों द्वारा पोंगल कहा जाता है।
उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी और पश्चिम बंगाल में इसे पौष संक्रांति कहा जाता है।
भारत के अलावा यह त्यौहार नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैंड, लाओस, म्यांमार, कम्बोडिया और श्रीलंका में मनाया जाता है।
कई राज्यों में भिन्न-भिन्न प्रकार से इस त्यौहार को मनाया जाता है।
लोग स्नान कर नए कपड़े पहनते है।
इस दिन घरों में तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं जिसमें मुख्य रूप से गुड़ और तिल का इस्तेमाल किया जाता है।
उत्तर प्रदेश में इस त्यौहार को काफी धूमधाम से मनाया जाता है।
इलाहबाद (प्रयागराज) के गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर हर साल माघ मेला लगता है।
ऐसी मान्यता है की पृथ्वी पर इस दिन (14 जनवरी) से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है।
माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होता है।
और यह स्नान करने की परंपरा शिवरात्रि के आखिरी तक चलता है।
स्नान के बाद दान दिया जाता है। बिहार में इस दिन उरद दाल की खिचड़ी बनाई जाती है।
महाराष्ट्र में भी दान दिया जाता है।
पश्चिम बंगाल के गंगासागर में हर वर्ष मेला लगता है। गंगासागर में स्नान दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है।
असम के लोग इसे बिहू कहते हैं। और पारम्परिक बिहू नृत्य करते हैं।
कई जगह पतंग महोत्सव का आयोजन होता है।
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तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल कहा जाता है। और लोग यहाँ चार दिनों तक इस त्यौहार को मनाते हैं।
भोगी-पोंगल, सूर्य-पोंगल, मट्टू-पोंगल और कन्या-पोंगल क्रमशः पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे दिन मनाया जाता है।
पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है।
स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं।
इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।
ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।
गंगा तट पर स्नान को बहुत शुभ माना जाता है।
इस दिन प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान कहा जाता है।
मकर संक्रांति से सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू कर देता है।
इस कारण से दिन की लम्बाई बढ़ने लगती है।
अंधकार से प्रकाश की ओर प्रगति होती है। सूर्य की उपासना एवं आराधना की जाती है।
सूर्य की उपासना एवं आराधना की जाती है। लोग एक दूसरे को सन्देश भेजते हैं और इस दिन की शुभकामनायें देते हैं।
एक बार फिर से आप सब को मकर संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनायें।
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