Chhath Puja की हार्दिक शुभकामनाएं !
छठ महापर्व भारतीय उपमहाद्वीप में मनाया जाने वाला भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित एक प्राचीन हिंदू वैदिक त्योहार है, जो विशेष रूप से भारतीय राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के मधेश क्षेत्र में मनाया जाता है।
इस त्यौहार में सूर्य देव (सभी शक्तियों का स्रोत) और छठी मैया (देवी उषा) की पूजा की जाती है।
प्रकाश, ऊर्जा और जीवन के देवता की पूजा मानव की भलाई, विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए की जाती है।
इस त्योहार के माध्यम से लोग चार दिनों की अवधि के लिए सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं।
व्रती इस त्योहार के दौरान उपवास रखते हैं।
छठ का त्यौहार साल में दो बार मनाया जाता है- एक बार गर्मियों में और दूसरी बार सर्दियों के दौरान।
गर्मियों के दौरान मनाया जाने वाला छठ चैती छठ के रूप में जाना जाता है।
यह होली के कुछ दिनों बाद मनाया जाता है।
सर्दियों के दौरान मनाया जाने वाला छठ कार्तिक छठ के नाम से जाना जाता है।
यह अक्टूबर या नवंबर के महीने के दौरान मनाया जाता है।
इसे कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के छठे दिन मनाया जाता है।
दिवाली के बाद 6वें दिन पर मनाया जाने वाला छठ का त्यौहार आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर के महीने में पड़ता है।
छठ पूजा की उत्पत्ति के पीछे कई कहानियाँ हैं।
एक मान्यता के अनुसार रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया था और सूर्यदेव की आराधना की थी।
सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में, द्रौपदी और हस्तिनापुर के पांडवों ने अपनी समस्याओं को हल करने और अपने खोए हुए राज्य को वापस पाने के लिए छठ पूजा मनाई थी।
अन्य कथा के अनुसार इस पूजा की शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी, जिन्होंने महाभारत काल में अंग देश (बिहार के भागलपुर) पर शासन किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार वैदिक काल के ऋषियों ने इस विधि का उपयोग किया था।
उन्होंने इस पूजा का उपयोग भोजन के किसी भी बाहरी साधन से नियंत्रण पाने के लिए और सीधे सूर्य की किरणों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी।
तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया।
इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई मगर वह मृत पैदा हुआ।
राजा प्रियवंद श्मशान गए और पुत्र वियोग में अपने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया।
ठीक उसी समय षष्ठी देवी वहां प्रकट हुईं और उस बालक को उठा लिया और उसे जीवित कर दिया।
जिसके बाद माता ने राजा को उनकी पूजा करने की बात कही जिससे उस बालक की आयु लम्बी हो और उसे यश की प्राप्ति हो।
इसके बाद राजा ने नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की।
यह पूजा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी।
छठ पर्व में कई अनुष्ठान शामिल होते हैं, जो अन्य हिंदू त्योहारों की तुलना में काफी कठोर होते हैं।
इनमें आमतौर पर नदियों या जल निकायों में डुबकी लेना, सख्त उपवास, खड़े होकर पानी में प्रार्थना करना, लंबे समय तक सूर्य का सामना करना और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य को प्रसाद देना शामिल हैं।
पूजा के पहले दिन, भक्तों को पवित्र नदी में डुबकी लगानी होती है और अपने लिए शुद्ध भोजन पकाना होता है।
इस दिन मिट्टी के चूल्हे के ऊपर मिट्टी या पीतल के बर्तनों और आम की लकड़ी का उपयोग करके कद्दू भात और चने की दाल बनाई जाती है।
व्रती इस दिन सिर्फ एक ही वक़्त इस भोजन का सेवन करते हैं।
दूसरे दिन, भक्तों को पूरे दिन का व्रत रखना होता है, जिसे वे सूर्यास्त के कुछ समय बाद तोड़ते हैं।
परवैतिन (उपवास करने वाली महिलायें) अपने से पूरे प्रसाद को पकाती हैं जिसमें खीर और रोटियाँ शामिल होती हैं।
वे इस प्रसाद के साथ अपना उपवास तोड़ते हैं, जिसके बाद उन्हें 36 घंटे तक बिना पानी के उपवास करना पड़ता है।
तीसरा दिन घर पर प्रसाद तैयार करके और फिर शाम को, व्रतियों का पूरा परिवार उनके साथ नदी तट पर जाता है।
यहाँ वे डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
महिलायें आमतौर पर पीले रंग की साड़ियाँ पहनती हैं।
लोक गीतों के साथ शाम को और भी बेहतर बनाया जाता है।
यह छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है।
इस दिन सभी भक्त उगते सूरज को अर्घ्य देने के लिए सूर्योदय से पहले नदी तट पर जाते हैं।
यह त्यौहार तब समाप्त होता है जब व्रति कच्चे दूध और थोड़ा सा प्रसाद खाकर अपना 36 घंटे का उपवास (पारण ) तोड़ते हैं।
छठ प्रसाद पारंपरिक रूप से चावल, गेहूं, सूखे मेवे, ताजे फल, बादाम, गुड़, नारियल और घी के साथ तैयार किया जाता है।
छठ के दौरान तैयार किए गए भोजन के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ये पूरी तरह से नमक, प्याज और लहसुन के बिना तैयार किए जाते हैं।
ठेकुआ छठ पूजा का एक विशेष हिस्सा है और यह गेहूँ के आटे से बनता है।
धार्मिक महत्व के अलावा छठ महापर्व से कई तथ्य भी जुड़े हुए हैं।
श्रद्धालु आमतौर पर सूर्योदय या सूर्यास्त के दौरान नदी तट पर प्रार्थना करते हैं।
इस दौरान पराबैंगनी विकिरणों (Ultraviolet Rays) का निम्नतम स्तर होता है और यह वास्तव में शरीर के लिए फायदेमंद होता है।
साथ ही यह पारंपरिक त्योहार हमें जीवन में सकारात्मकता दिखाता है और हमारे दिमाग, आत्मा और शरीर को अंदर से साफ़ (detox) करता है।
शक्तिशाली सूरज को निहार कर हमारे शरीर की सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने में मदद मिलती है।
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