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Sunday in 90s | 90 के दशक के रविवार

The old good 90s’ Sunday

एक युग जिसे हम आज भी याद करते हैं- 90s and The old good 90s’ Sunday. ज़िन्दगी बहुत simpler थी तब आज के मुकाबले।

छोटी-छोटी चीज़ों में हम खुशियाँ ढूँढा करते थे।

हमारी life तब technology से इतनी प्रभावित नहीं थी।

आज भले ही दुनिया advanced हो चुकी है मगर वो सारे moments आज भी बरक़रार है यादों में।

यूँ तो weekends आज भी अच्छे लगते हैं मगर जो weekends 90s में हुआ करते थे उस तरह के weekends आज नहीं होते

तब जब भी schools में कोई project मिलता था हमें तब उसमें हमारी सोच और creativity exclusive होती थी।

हमारी सोचने की क्षमता और creativity skill बहुत हुआ करती थी तब।

I’m afraid कि बच्चे इन दिनों वो creativity दिखा नहीं पाते।

सबसे पहला ख्याल उनके मन में Google का आता है।

यहाँ तक कि अगर school में उन्हें अपना introduction भी देना होता है तो भी Google का सहारा लिया जाता है।

पढ़ें: बचपन की यादें

Remembering the moments

चलिए उन moments को फिर से याद करने की कोशिश करते हैं-

sunday

जैसे ही Saturday को स्कूल की छुट्टी होती थी तब चेहरे पर एक अजीब-सी खुशी होती थी घर जाने की। क्योंकि हमे पता होता था कि कल छुट्टी है।

घर पहुंचकर सबसे पहले homework की ओर ध्यान जाता था कि सबसे पहले उनको complete किया जाये ताकि हमारा Sunday uninterrupted गुजरे।

मुझे याद है तब Saturdays को बड़ी ही बेसब्री से रात के 9:30 बजने का इंतज़ार किया जाता था क्योंकि सबको साथ बैठकर “जय हनुमान” देखना होता था।

B.R.Chopra की महाभारत

Sunday की सुबह शुरुआत होती थी “रंगोली” से जिसमें नए नए गाने दिखाए जाते थे।

फिर बारी आती थी B.R.Chopra की महाभारत की।

ये वो समय होता था जब मोहल्ले के सारे roads सुनसान-से नज़र आते थे।

क्योंकि सब अपने-अपने घरों में families के साथ T.V. देखा करते थे।

Superhero Shaktimaan

और फिर वक़्त होता था हमारे बचपन के Superhero Shaktimaan को देखने का जिसमें वो “अँधेरा कायम रहे” वाले “तमराज किल्विष” से मुकाबला करते थे।

एक अलग ही मज़ा आता था Shaktimaan को देखने का।

Show के आखिर में वो जिस तरह से बच्चों को moral values के बारे में समझाते थे वो देखने लायक होता था।

वो बच्चों का कान पकड़पर Shaktimaan को “Sorry Shaktimaan” बोलना आज भी अच्छी तरह-से याद है।

दूसरे मोहल्ले के बच्चों के साथ matchcricket

Sundays को समय होता था दूसरे मोहल्ले के बच्चों के साथ cricket match खेलने का।

और फिर match जीतने के बाद समोसे की party होती थी।

football

अगर किसी Sunday को बारिश हुई तो Football मैच हुआ करता था। फिर मटमैले होके घर वापस आते थे।

DD1 पे film

bw tv

अब बारी होती थी शाम को 4 बजे सबके साथ बैठकर DD1 पे film देखने का।

क्योंकि mostly तब घरों में antenaa वाले  black and white वाले T.V. हुआ करते थे।

सारे programmes इसी B/W T.V. में enjoy किये जाते थे।

Picnic का plan

picnic

कभी कभी Sundays को picnic का भी plan हुआ करता था।

सारे परिवार के लोग किसी park या कोई favorite spot पर बैठकर साथ time spend किया करते थे।

Monday वाली feel

शाम होते ही Monday वाली feel फिर से आने लगती थी। सारे uniforms को उसी दिन ready कर दिया जाता था।

और हम लग जाते थे अपने जूतों को चमकाने में।

आजकल के Sunday

video game

आज ये सारी चीज़ें कहीं देखने को नहीं मिलती।

बच्चे आजकल उतनी बेसब्री से Sunday का इंतज़ार नहीं करते क्योंकि आजकल हर रोज़ कभी भी कहीं भी films, favorite shows आसानी से देखे जा सकते हैं।

बाहर भी बच्चों का खेलना कम ही होता है क्योंकि उनके पास video games है खेलने के लिए।

कभी अगर साथ बैठकर T.V. देख लिया तो उसमें भी अपने अपने favorite shows को देखने के लिए, remote के लिए छोटी-मोटी लड़ाई- झगड़े होते रहते हैं।

सच तो ये भी है कि बच्चे आजकल थोड़े ही सही पर physically और mentally कमजोर होते जा रहे हैं।

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