भारतीय क्रिकेट के दिग्गज Sachin Tendulkar ने 15 नवंबर 1989 को पाकिस्तान के खिलाफ अपना डेब्यू किया था।
उस वक़्त तेंदुलकर की उम्र सिर्फ 16 साल 205 दिन थी।
इतनी कम उम्र में उन्हें वकार यूनिस और वसीम अकरम जैसे तेज गेंदबाजों के खिलाफ खेलने के लिए लाया गया था।
पहले टेस्ट मैच में, तेंदुलकर जल्दी आउट हो गए।
उन्हें 15 रन पर वक़ार यूनिस ने क्लीन बोल्ड कर दिया था।
दूसरे मैच में, उन्होंने 59 रन बनाए और पाकिस्तान के हर गेंदबाज को चौके मारे।
लेकिन असली कहानी अभी बाकि थी।
तीसरे टेस्ट के बाद सीरीज 0 -0 की बराबरी पर था।
सीरीज का चौथा और सचिन के करियर का भी चौथा मैच, सियालकोट का मैदान।
पहली पारी में 65 रनों की बढ़त लेने के बावजूद भारतीय टीम दूसरी पारी में वक़ार यूनिस और वसीम अकरम की घातक गेंदबाज़ी के कारण 38 रन पर चार विकेट गवाँ चूका थी।
उस वक़्त तेंदुलकर बल्लेबाजी करने उतरे ।
मांजरेकर, श्रीकांत, अजहरुद्दीन और रवि शास्त्री जैसे अनुभवी बल्लेबाज पैवेलियन लौट चुके थे।
शायद ही किसी को उम्मीद थी कि 16 साल का यह बल्लेबाज पाकिस्तान की घातक गेंदबाज़ी का सामना कर सकेगा।
उद्घाटक बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू पहले से ही क्रीज पर थे।
चूँकि यह एक हरा-टॉप विकेट था और वकार यूनिस एक सुपर-फास्ट गेंदबाज थे, इसलिए भारत के लिए क्रीज पर बहुत मुश्किल समय था।
वकार यूनिस गेंदबाजी करने आए और एक गेंद को विकेट के बीच में पटक दिया।
गेंद सचिन की नाक पर लगी।
वे नीचे गिर गए और नाक से खून बहने लगा।
भारतीय फिजियो मदद के लिए पिच की ओर दौड़े।
नॉन-स्ट्राइकर नवजोत सिंह सिद्धू भी उनके बचाव के लिए दौड़े।
अब हर कोई को यही उम्मीद थी कि सचिन तेंदुलकर को स्ट्रेचर पर ले जाया जायेगा।
सिद्धू ने सचिन को रिटायर्ड हर्ट होकर बहार जाने को कहा और बाद में बल्लेबाजी के लिए आने को कहा जब यूनिस और अकरम का स्पेल ख़त्म हो जाये।
लेकिन तभी Sachin Tendulkar ने अपनी मुम्बईया हिंदी में कहा, “मैं खेलेगा”।
तेंदुलकर ने अपने फिजियो और नवजोत सिंह सिद्धू से कहा कि वे इलाज के लिए बाहर नहीं जायेंगे।
सिद्धू कहते हैं उस वक्त एक सितारे ने जन्म लिया।
इन दो शब्दों ने अगले दो दशक तक भारतीय क्रिकेट को परिभाषित किया।
तेंदुलकर उठे और वकार यूनिस की अगली गेंद को चौके के लिए सीमा रेखा के बाहर भेज दिया।
सचिन ने 57 रन बनाये और सिद्धू के साथ मैच बचाने वाली 101 रनों की शतकीय साझेदारी की।
और उसके बाद सचिन ने वही किया जो उन्होंने कहा था।
उन्होंने अगले 23 वर्षों तक भारत के लिए क्रिकेट खेला और बतौर बल्लेबाज विश्व क्रिकेट में हर संभव रिकॉर्ड बनाया।
आज अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनके 100 शतक हैं।
वे टेस्ट मैचों और एकदिवसीय मैचों दोनों में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं।
वे क्रिकेट के भगवान कहे जाने लगे।
लेकिन यह सब उन दो शब्दों के साथ शुरू हुआ, “मैं खेलेगा”।
उस वाकये को याद कर तेंदुलकर कहते हैं, “वकार की बाउंसर और दर्द के साथ खेलने ने मुझे परिभाषित किया। इस तरह की चोटों के बाद आप या तो मजबूत होते हैं या आप कहीं नहीं दिखते हैं।”
दोस्तों, ज़रा सोचिये कि अगर उस वक़्त सचिन घबराकर क्रीज से चले जाते तो क्या जो आज उन्होंने मुकाम हासिल किया है वो हासिल कर पाते ?
शायद नहीं,
जो चैंपियन को अन्य लोगों से अलग करता है वह सिर्फ प्रतिभा नहीं है। यह रवैया है। यह मानसिक शक्ति है, यह लड़ने की इच्छा है। यह “मैं खेलेगा” वाली भावना है।
Sachin Tendulkar की इस real life story से यही सीखने को मिलती है कि हमें मुश्किल परिस्थितियों का डटकर सामना करना चाहिए। उन परिस्थितियों से डरकर या घबराकर दूर हटना नहीं चाहिए।
जीवन में कठिन परिस्थितियाँ, मुश्किल दौर आएँगे, जरुरत है तो बस हमें “मैं खेलेगा” कहने की। उन कठिन परिस्थितियाँ, मुश्किल दौरों का डटकर सामना करने की।
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