Rath Yatra या रथ उत्सव हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह शब्द विशेष रूप से ओड़िशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और अन्य पूर्व भारतीय राज्यों में वार्षिक रथयात्रा को संदर्भित करता है।
विशेष रूप से ओड़िआ उत्सव जिसमें भगवान जगन्नाथ (विष्णु अवतार), उनके भाई बलभद्र, उनकी बहन सुभद्रा और भगवन विष्णु के हथियार सुदर्शन चक्र को लकड़ी के बने हुए रथ पर सवार करके सार्वजनिक जुलुस निकला जाता है।
यह हर साल लाखों हिंदू तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो जुलूस में शामिल होते हैं।
भारत के हिंदू धर्म में विष्णु-संबंधी (जगन्नाथ, राम, कृष्ण) परंपराओं में रथयात्रा के जुलूस ऐतिहासिक रूप से आम रहे हैं।
नेपाल में शिव-संबंधी परंपराओं, संतों और देवी-देवताओं में, जैन धर्म में तीर्थंकरों के साथ-साथ भारत के पूर्वी हिस्सों के राज्य के आदिवासी लोक धर्मों में रथयात्रा देखने को मिलता है।
भारत में उल्लेखनीय रथयात्राओं में पुरी की रथ यात्रा और महेश की रथ यात्रा शामिल हैं।
भारत के बाहर सिंगापुर जैसे देशों में भगवान जगन्नाथ, कृष्ण, शिव और मरिअम्मन से जुड़े हिंदू समुदाय, रथयात्रा मनाते हैं।
रथ यात्रा का धार्मिक उद्गम और अर्थ है।
आयोजकों और प्रतिभागियों के लिए रथ यात्रा एक प्रमुख सामुदायिक विरासत, सामाजिक साझाकरण और सांस्कृतिक महत्व है।
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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी में आयोजित की जाती है।
यह भारत और विश्व में होने वाली सबसे पुरानी रथ यात्रा है।
इसका वर्णन ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, और स्कंद पुराण और कपिला संहिता में पाया जा सकता है।
मंदिर की संरचनाओं से मिलते-जुलते तीन बड़े पैमाने पर सजाए गए रथ, पुरी की सड़कों पर खींचे जाते हैं।
रथयात्रा में, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा के मूर्तियों को रथ में जुलूस निकालकर अपनी मौसी के मंदिर गुंडिचा मंदिर पहुँचाया जाता है।
इन्हें नौ दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रखा जाता है।
फिर प्रतिमाएं रथयात्रा के जरिए मुख्य मंदिर में लौटती हैं। इसे बहुदा जात्रा के नाम से जाना जाता है।
यह एकमात्र दिन है जब गैर-हिंदू और विदेशी भक्त जिन्हें मंदिर परिसर में अनुमति नहीं है, वे देवताओं की झलक पा सकते हैं।
त्यौहार के दौरान, दुनिया भर से भक्त रथ खींचने की इच्छा के साथ पुरी जाते हैं।
वे इसे शुभ कर्म मानते हैं।
रथों के साथ विशाल जुलूस निकाले जाते हैं। ढोल, नगाड़े, तुरही आदि के साथ भक्ति गीत बजाए जाते हैं।
देश-विदेश से इस वार्षिक आयोजन के लिए लाखों भक्त पुरी में एकत्रित होते हैं।
इस रथ यात्रा का सीधा प्रसारण कई भारतीय, विदेशी television channels के साथ-साथ कई websites पर किया जाता है।
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हरे कृष्णा आंदोलन के माध्यम से 1968 से दुनिया के अधिकांश प्रमुख शहरों में रथ यात्रा उत्सव एक आम दृश्य बन गया है।
USA के San Francisco, Florida, Czech Republic के Prague, South Africa के Durban, Italy के Rome, Australia के Brisbane, Russia के Moscow, Nepal के Bhaktapur, England के London, New Zealand के Auckland जैसे शहरों में रथयात्रा धूमधाम से मनाया जाता है।
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धामराई जगन्नाथ रथ एक रथ मंदिर है, जो कि बांग्लादेश के धामराई में स्थित हिंदू भगवान जगन्नाथ को समर्पित है।
वार्षिक जगन्नाथ रथ यात्रा हजारों लोगों को आकर्षित करने वाला एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है।
धामराई में रथ यात्रा बांग्लादेश के हिंदू समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।
1971 में पाकिस्तान की सेना द्वारा मूल ऐतिहासिक रथ को जला दिया गया था।
रथ को भारतीय सहायता के साथ फिर से बनाया गया है।
महेश की रथ यात्रा भारत का दूसरा सबसे पुराना रथ त्योहार है (पुरी में रथ यात्रा के बाद) और बंगाल में सबसे पुराना है।
यह पश्चिम बंगाल के सेरामपुर के महेश में एक महीने तक चलने वाला त्योहार है और उस समय एक भव्य मेला लगता है।
लोग मंदिर से गुंडिचा बारी (मासीर बाड़ी) और वापस यात्रा पर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के रथों से जुड़ी लंबी रस्सियों को खींचने में हिस्सा लेते हैं।
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