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Smartphone: A Boon or a Curse | स्मार्टफ़ोन: एक वरदान या एक अभिशाप

दोस्तों, आज हमारी लाइफ में smartphone का बहुत योगदान है।

मगर हम इस device से addicted-से हो गए हैं। जो हमें नहीं होना है।

आज मैं एक छोटी-सी कहानी बताना चाहता हूँ “Smartphone: A Boon or a Curse” पर

Hindi story on Smartphone

टिंकू बहुत दिनों के बाद अपने घर वापस आया था। अब वो कॉलेज में जो पढ़ने लगा था।

बचपन से ही उसकी तमन्ना थी कि बारहवीं के बाद वो किसी बड़े शहर में अच्छे कॉलेज में पढ़ेगा।

और इसके लिए उसने खूब मेहनत भी की थी। और उसकी मेहनत रंग ला चुकी थी।

अब वो बड़े शहर में पढ़ रहा था।

घरवाले बहुत खुश थे उसकी मेहनत से।

पार्क की सैर

टिंकू के परिवार में ६ सदस्य थे। टिंकू में मम्मी-पापा, उसकी छोटी बहन और उसके दादा-दादी।

टिंकू अपने दादाजी से बहुत करीब था। घर में सबसे ज्यादा वक़्त वो अपने दादाजी के साथ ही गुजारा करता था।

अपने स्कूल से आने के बाद वो दादाजी के साथ ढेर-सारी बातें किया करता था। और रोज़ शाम को दोनों पार्क की सैर करने जाते थे।

मगर एक बार टिंकू के शहर जाने के बाद ये आदत भी चली गयी।

 

टिंकू के घर आने के बाद आज दादाजी की बहुत इच्छा हो रही थी कि एक बार फिर से दोनों सैर करने जाएँ।

उन्होंने टिंकू को पूछा, “बेटा टिंकू, चलो आज पार्क की सैर करने चलें।”

टिंकू ने कहा, “नहीं दादाजी, मैं बहुत थक गया हूँ, मैं नहीं जा सकता आज।”

दादाजी ने कहा “कोई बात नहीं बेटा, हम कल चलते हैं।”

अगले दिन दादाजी ने फिर टिंकू से पार्क चलने की बात कही।

टिंकू ने कहा, “दादाजी मुझे कुछ काम है, मैं नहीं जा सकता।”

 

इस तरह जब भी दादाजी टिंकू से पार्क जाने की बात करते थे वो टाल देता था।

अब वो दादाजी के साथ बातें भी बहुत कम किया करता था।

दादाजी को टिंकू अब थोड़ा बदला-बदला-सा नज़र आने लगा था।

एक दिन दादाजी ने टिंकू के कमरे में जाकर देखा तो पाया कि टिंकू अपने phone में व्यस्त था।

अब टिंकू अपना ज्यादातर वक़्त phone के साथ ही गुजारा करता था।  

Smartphone in our life

दोस्तों, हम कहीं बाहर जा रहे हों और अचानक पता चले कि हमने अपना phone घर में छोड़ दिया है।

तो हम वापस घर की ओर दौड़ने लगते हैं।

लेकिन अगर situation ऐसी हो कि हम घर नहीं जा सकते, तो ??

कैसा महसूस होता है उस वक़्त ?

एक अजीब-सी डर सताने लगती है। घबराहट होने लगती है, ऐसा लगता है मानो हम कहीं खो गये हों।

Smartphone आज हमारे ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चूका है।

इसके बिना ये ज़िन्दगी कुछ अधुरी-सी लगने लगती है ।

Uses of smartphone

Surfing, e-mail, social media, गाने सुनना, games खेलना, pics लेना, साथ ही देश और दुनिया की तमाम ख़बरों से रूबरू होने के लिए इसकी ज़रुरत पड़ती है।

और इनके असली मकसद यानी बातें करने के लिए आज इस छोटे-से device का सहारा लेना पड़ता है।

कुछ दशक पहले ये मुमकिन नहीं था। Smartphone के आने के साथ ही आज हमारी ज़िन्दगी काफी हद तक बदल-सी गयी है।

इसके द्वारा हम कभी भी, कहीं से भी, किसी भी चीज़ की जानकारी बड़ी ही आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

पहले हमें देश और दुनिया की तमाम ख़बरों के लिए हर सवेरे बेसब्री से अख़बार का इंतज़ार करना पड़ता था, साथ ही अगर television पर किसी favorite program को देखना हो तो भी।

मगर आज Smartphone के आने के बाद ये सारी चीज़ों के लिए घंटो इंतज़ार नहीं करना पड़ता है।

पढ़ें: जीवन क्या है ?

दो पहलू

लेकिन जैसा कि कहा जाता है “Every coin has two sides” अर्थात् हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।

इसके भी दो पहलू हैं। हमारे लिए यह वरदान है और शायद अभिशाप भी !

For instance अगर आज कभी भी हमें कोई प्रश्न पूछा जाता है तो स्वत: ही हमें internet का ख्याल आ जाता है।

उस प्रश्न को हम अपने से हल करने की कोशिश नहीं करते।

सच तो ये है कि हम थोड़े-से ही सही पर आलस्य को अपना रहें हैं क्योंकि हमें पता है कि Smartphone के ज़रिये हम कभी भी उस प्रश्न का हल खोज सकते हैं।

किसी project को करने के लिए भी सबसे पहले Smartphone का रुख करते हैं। उसमें हमारी exclusive creativity नहीं होती।

सुबह उठते ही alarm बंद करने के साथ ये सिलसिला शुरू हो जाता है।

जैसे-जैसे दिन बीतता जाता है phone पर हमारा काम बढ़ता जाता है।

WhatsApp पे किसी से बातें करनी हो या Instagram अथवा Facebook पर तस्वीरें share करनी हो। 

Cricket का score जानना हो या फिर घर बैठे किसी चीज़ की online shopping करनी हो, हमें इसकी ज़रूरत पड़ती है।

आज आलम यह है कि खाना खाते हुए भी इसका साथ नहीं छूटता।

और तो और bathroom में भी इसका साथ नहीं छूटता।

रात को सोने से पहले और सोते वक़्त भी ये हमारे साथ ही होता है।

पढ़ें: जीवन में संतुष्टि रखना कितना महत्वपूर्ण है ?

सोचने वाली बात

आज, हमारा ज्यादातर वक़्त अपने phones के साथ ही बीतता है।

हालत ऐसी हो गयी है कि किसी के पास होते हुए भी हम दूर हैं और किसी के दूर होते हुए भी पास हैं। एक balance बना के रखना बहुत जरुरी है।

अब सोचने वाली बात ये है कि “क्या Smartphone हमें socially मजबूत बना रही है या फिर ठीक इसके विपरीत है ?”

क्या आज हमारे पास अपने घरवालों, दोस्तों या रिश्तेदारों से साथ बैठ के दो-चार बातें करने के लिए वक़्त है ?

Nikhil Kumar

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