दोस्तों, कभी-कभी ऐसा होता है कि हम अपने पास मौजूद चीजों की परवाह नहीं करते हैं। कभी-कभी हम उन रिश्तों/relationships की भी परवाह नहीं करते हैं जो हम अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों या किसी और के साथ साझा करते हैं।
और फिर एक बार जब हम उनसे दूर हो जाते हैं, तो हमें एहसास होने लगता है कि वे हमारे जीवन में कितने महत्वपूर्ण हैं।
एक शहर में दो दोस्त आयुष और मिकी रहा करते थे।
साथ में स्कूल जाते, खेलते और साथ में खूब सारी मौज़- मस्ती करते थे।
दोस्त ज़रूर थे वो मगर दोनों का स्वाभाव एक-सा नहीं था।
आयुष जहाँ थोड़ा नटखट और मस्तीखोर स्वाभाव का लड़का था, वहीं मिकी थोड़ा विपरीत स्वभाव का था।
मिकी को अक्सर छोटी-छोटी बातों के लिए गुस्सा आ जाता था। वो अपने माता -पिता की कुछ बातों से भी चिढ़ जाता था।
घरवाले अक्सर उससे थोड़े परेशान रहा करते थे।
मिकी को लगता कि उसके घरवाले उससे बेकार की बातें करते रहते हैं।
मगर जब दोनों आयुष और मिकी साथ होते थे तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता था।
दोनों एक-दूसरे से बातों को शेयर करते और अच्छे से बातें करते थे।
आयुष अपने गाँव और माता-पिता से दूर हॉस्टल में रहता था। छुट्टियों में ही वो अपने घर जा पाता था।
वहीं मिकी अपने माता-पिता के साथ ही रहता था।
बोर्ड एग्जाम के बाद आयुष दूसरे शहर चला गया और मिकी भी दूसरे शहर।
क्योंकि आयुष पहले भी अपने माता-पिता से दूर रह चूका था तो उसे नए शहर में एडजस्ट होने में ज्यादा समय नहीं लगा।
वहीं दूसरी ओर मिकी को नए शहर में छोड़ने उसके पिता साथ गए थे।
मिकी को छोड़कर जब वो जाने लगे थे, पता नहीं क्यों, उसके आखों से आँसू निकल रहे थे।
उसे कुछ अजीब-सा एहसास होने लगा था।
उसके पिता अब उसे नए शहर में छोड़कर जा चुके थे। मिकी को इस शहर में सब कुछ अनजाना-सा लग रहा था।
कुछ दिनों तक वो इसी तरह अपना समय काटता रहा। न वो किसी से बात करता और न ही वो अपने कमरे से बाहर निकलता था।
फिर उसने आयुष से बात करने की सोची।
हर दिन की तरह आयुष आज भी अपनी नई हॉस्टल की बालकनी में टहल रहा था।
अचानक से उसके फ़ोन की घंटी बजी। वो दौड़कर अपने फ़ोन के पास गया।
देखा तो मिकी का कॉल आ रहा था। उसने फ़ोन उठाया, “हैलो……….।”
दूसरी तरफ से आवाज़ आई, “हैलो, मैं मिकी बोल रहा हूँ……………।”
इससे पहले कि आयुष कुछ और बोल पाता मिकी ने अपनी बात को आगे बढ़ाया और लगातार बोलता ही जा रहा था।
उसने आयुष को पहले दस मिनट “हाँ…….हाँ……” के अलावा कुछ बोलने ही नहीं दिया।
मिकी ने बताया कि जब उसे उसके पापा छोड़कर लौट रहे थे तो वो अपने आपको रोने से रोक नहीं पाया था।
उसने बताया कि अब उसे घरवालों की बहुत याद आ रही थी।
पहली बार उसे कुछ अलग-सा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी और दुनिया में आ गया हो।
लग रहा था जैसे कोई उससे दूर चला गया है।
एक- एक करके उसे अपने माता-पिता की कही हुई सारी बातें याद आ रही थीं।
आयुष ने मिकी को समझते हुए कहा, “देखो मिकी, जब मैं अपने घर से दूर पहली बार हॉस्टल गया था तो मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा था। मगर कुछ दिनों के बाद सब कुछ ठीक हो गया। चिंता न करो, सब ठीक हो जायेगा।”
शायद, आज पहली बार मिकी को घरवालों, खासकर अपने माता-पिता के महत्व की समझ आ रही थी।
दोस्तों, ऐसी कई चीज़ें हैं, कई रिश्ते/relationships हैं, जिनको हम “as granted” ले लेते हैं। लेकिन जब हम उनसे दूर होते हैं, तभी उनकी महत्ता समझ में आती है।
“किसी का महत्त्व हमें तभी समझ में आता है जब हम उससे दूर हों।”
इसीलिए दोस्तों, हमें हर छोटी-बड़ी चीज़ों की, और साथ ही रिश्तों की भी हमेशा कद्र करनी चाहिए।
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Micky ka story kuch haad Tak apna sa laga.
Basu bhai, mujhe lagta hai bahut log is story se apne aap ko relate kr payenge. Anyway thanks for your time. I hope you like the other posts too.